भारत की पहली महिला डॉक्टर

भारत की पहली महिला डॉक्टर


किसी भी देश में 3 लोग सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण होते हैं. पहला उस देश की आर्मी जो देश की सुरक्षा करती है. दूसरा होता है किसान जो भी देश के लोगों का पेट भरता है और तीसरा होता है चिकित्सक यानी कि डॉक्टर वैसे डॉक्टर और भगवान को लोग एक समान कहते हैं क्योंकि डॉक्टर का काम जान बचाना होता है. 
भारत की पहली महिला डाक्टर: आनंदीबाई गोपाल राव जोशी. 


31 मार्च 1865 मैं महाराष्ट्र के कल्याण में आनंदी बाई का जन्म हुआ. लेकिन बचपन में उनके परिवार के द्वारा उनका नाम यमुना रखा गया. जब हम ना 9 साल की हुई उस वक्त भारत में बाल विवाह जैसी परंपराएं प्रचलित थी. जिसके बाद परिवार के दबाव के चलते यमुना की शादी गोपाला राव जोशी नामक व्यक्ति से कर दी जाती है. शादी के बाद गोपाल राव जोशी ने यमुना का नाम आनंदी रख दिया. उस वक्त गोपाला राव डाक बाबू की तरह काम करते थे. 14 साल की उम्र में आनंदी ने अपने पहले बेटे को जन्म दिया. लेकिन गांव में अच्छे चिकित्सक ना होने के कारण जन्म देने के 10 दिन के बाद ही उस बच्चे की मृत्यु हो जाती है. 
अपने बच्चे को खो देने के कारण आनंदी को चिकित्सक बनने की जल्दी होती है. वह जाकर अपने मन की बात अपने पति से कहती हैं. गोपाल राव जोशी महिलाओं का बहुत सम्मान करते थे जिस कारण से उन्होंने आनंदी की इस बात को स्वीकार कर उन्हें आगे बढ़ने का साहस दिया. उस वक्त गोपाला राव जोशी का ट्रांसफर कोलकाता हो गया जिसके कारण आनंदी ने वहां रहकर संस्कृत और अंग्रेजी सीखी. 

1880 में गोपाला राव ने रॉयल बिल्डर(Royal Wilder)  नामक एक अमेरिका के प्रचारक को पत्र लिखा कि उनकी पत्नी आनंदी को मेडिकल की पढ़ाई करनी है. यह बात बिल्डर ने वहां की एक मैगजीन में प्रिंट करवाया. और यह बात तिड़िकिया कारपेंटर नामक जो कि पेशे से एक डेंटिस्ट थी उसने यह आर्टिकल पड़ा। आर्टिकल पढ़कर उन्हें बहुत खुशी हुई क्योंकि उस वक्त चिकित्सक बनना कोई आम बात नहीं थी। फिर उन्होंने आनंदी को एक खत लिखा जिसमें उन्होंने लिखा कि उन्हें बहुत खुशी हुई कि आनंदी एक चिकित्सक बनना चाहती हैं। इसी प्रकार खातों के माध्यम से दोनों में काफी मजबूत दोस्ती हो गई और तिड़िकीय कारपेंटर ने आनंदी को उनके पास आकर अमेरिका में ही पढ़ाई करने को कहा। लेकिन तब आनंदी की तबीयत इतनी ठीक नहीं थी कि वे अमेरिका जाकर वहां पढ़ाई कर सकें। फिर 1883 मे गोपाला राव का ट्रांसफर सेरमपुर, ट्रांसफर के बाद गोपाला राव आनंदी को अमेरिका जाने की सलाह देते हैं। उनकी तबीयत खराब होने के बावजूद भी कुछ करके गोपाला राव ने आनंदी को अमेरिका जाने के लिए मना ही लिया। 

इसकेे बाद गोपाला राव ने अमेरिका के कॉलेज इसकी जानकारी इकट्ठा करना शुरू कर दिया जिसके बाद वहां के एक डॉक्टर ने उन्हें वूमंस कॉलेज ऑफ पेनसिल्वेनिया मैं दाखिला करवाने की सलाह दी। 19 साल की उम्र में आनंदीबाई ने कोलकाता से न्यूयॉर्क के शिप में सफर करना शुरू कर दिया। 
1883 जून में जब आनंदी वहां पहुंचती हैं तो उनको रिसीव करने  तेडोकिया कार्पेंटर आती है और घर पहुंचने के तुरंत बाद आनंदीबाई ने वूमंस कॉलेज ऑफ पेंसिलवेनिया को एक फॉर्म लिखा यह कहते हुए कि वह उनके कॉलेज में ज्वाइन होना चाहती है। उस कॉलेज के डीन रचेल बॉडली (Rachel Bodley) कॉलेज में उनका एडमिशन कर लिया। 

अमेरिका में ज्यादा दिन रहने के कारण आनंदीबाई की तबीयत फिर से खराब होने लग गई। अमेरिका की सर्दी और वहां के खाने के कारण उन्हें ट्यूबरकुलोसिस (T.B. ) हो गय। लेकिन यह बीमारी उन्हें कैसे रोक सकती थी। 
1886 मैं उन्होंने डॉक्टर ऑफ़ मेडिसिन की डिग्री प्राप्त कर ली। इस खुशी के अवसर पर क्वीन विक्टोरिया ने उन्हें बधाई देते हुए एक पत्र लिखा। और जब वे भारत आए तो पूरे भारत ने उनका स्वागत किया। 
भारत लौटने के बाद उनकी तबीयत और बिगड़ने लगी फिर 26 फरवरी 1887 को उनका देहांत हो गया।