शिक्षा विभाग: निजी स्कूलों की मनमानी से कट रही अभिभावकों की जेब यह है पूरा मामला

Educational: शिक्षा जैसे महत्वपूर्ण एवं पुण्य के कार्य मे निजी विद्यालयों की यह मनमानी अभिभावकों को कब तक झेलनी होगी. इसके लिए सरकार कोई ठोस कदम उठाएगी

शिक्षा विभाग: निजी स्कूलों की मनमानी से कट रही अभिभावकों की जेब यह है पूरा मामला

शिक्षा विभाग: प्राइवेट स्कूलाें की मनमानी पैरेंट्स हुए परेशान
Educational: अच्छी शिक्षा जीवन में सार्थक  उद्देश्य प्रदान करती है देश के भविष्य स्वरूप बच्चों का मार्गदर्शन करने में सहयोगी होती है. शिक्षा ही वह माध्यम है जो व्यक्तिगत उन्नति के साथ सामाजिक स्तर में बढ़ावा देती है, राष्ट्र की सफलता सामाजिक स्वास्थ्य में सुधार और आर्थिक प्रगति में सहायक साधन भी शिक्षा ही है. लेकिन वर्तमान में निजी स्कूलों की मनमानी से अभिभावक परेशान हैं. अभिभावकों को  ऐसा लगने लगा है कि ये निजी विद्यालय बच्चों को शिक्षित करने की जगह अपनी जेब भरने में लगे हैं. इन प्राइवेट स्कूलाें की मनमानी जहाँ पैरेंट्स  परेशान हैं वहीं सरकार की ओर से इन विद्यालयों को नियंत्रित करने के प्रयास कारगर होते नही दिख रहे हैं.
यह तो सभी जानते हैं कि मार्च-अप्रैल का महीना बच्चों की परीक्षा और प्रवेश  के लिए जाना जाता है.  अब तो अप्रैल का महीना निजी स्कूलों की मनमानी के चरम के रूप में भी जाना जाने लगा है. मार्च में बच्चे विषय की परीक्षा देते हैं और अप्रैल में उनके माता-पिता अभिभावकों को आर्थिक  परीक्षा से गुजरना पड़ता है. 

अभिभावकों का कहना

 
निजी विद्यालय संचालक जानबूझकर महंगी किताब, महंगी कॉपी, की लिस्ट तैयार करते हैं. अभिभावकों के आर्थिक भार को बढ़ाने के लिए बच्चों के ड्रेस (यूनिफॉर्म) जूता आदि भी प्रति वर्ष बदल देते हैं. एक बड़ी बात यह भी की बच्चों के माता-पिता अप्रैल में ही स्कूल और स्कूल द्वारा बताई गई दुकानों के बीच लगी रहती है भागते नजर आते हैं. सभी प्राइवेट स्कूल अपनी दुकानें निर्धारित किये हुए हैं. उन दुकानों से यदि सामग्री न ख़रीदी जाए तो विद्यालय प्रबंधन उसे स्वीकार नही करता ऐसे में दबी जुबान यह सुनने में आता है कि निजी स्कूल उन दुकानों के साथ मिलकर कमीशन का खेल बरकरार रखे हुए हैं. 


इतनी महंगी किताबें क्यों जबकि पब्लिकेशन देता है छूट कहाँ जाता है छूट का पैसा?


इस बात का प्रमाण अभिभावकों की उस बात में देख सकते हैं कि प्राइवेट स्कूल से अभिभावक को किताब की लिस्ट के साथ इनसे जुड़ी दुकान के नाम भी दिए बताए जाते हैं.  किताबें भी ऐसी की निश्चित दुकान के अतिरिक्त कहीं मिल भी नही सकती चाहे आप पूरी बाजार में दौड़ लगा लें. इनका रेट इतना कि आप साल भर अपना बजट ही बनाते रहें.प्राइवेट स्कूल द्वारा निर्धारित किताबे इतनी महंगी क्यों मिलती है, जबकि पब्लिकेशन 20 से 50 प्रतिशत तक कि छूट दुकान संचालको को देते हैं.

NCERT BOOK

एक अभिभावक कहते हैं कि एनसीईआरटी की किताबें सस्ती हैं परंतु ये किताबें इन स्कूलों द्वारा क्यों लागू नही की जाती यदि वह किताबें प्राइवेट स्कूल में लगें तो हमारा आर्थिक भार थोड़ा कम हो सकता है.

आगे होगा क्या

शिक्षा जैसे महत्वपूर्ण एवं पुण्य के कार्य मे निजी विद्यालयों की यह मनमानी अभिभावकों को कब तक झेलनी होगी. इसके लिए सरकार कोई ठोस कदम उठाएगी या यह क्रम यू हीं चलता रहेगा. यह प्रश्न अभी मूर्त रूप में बना हुआ है जिसका उत्तर आने वाले समय की गोद मे छिपा है.