देहात लोक रंग पर्व 2023 : स्त्री के मन का प्रेम तब साकार है, जब उसमें प्रेम और प्रेमी दोनों सच्चे हो
Dehat Lok Rang Parv 2023: 7वें देहात लोक रंग पर्व में द्वितीय दिवस लोकरंग समिति सतना द्वारा "विजय दानदेथा" की देथा कथा का मंचन हुआ
Dehat Lok Rang Parv 2023: भूत वर्तमान और भविष्य के बीच मे झूलते मानव की व्यथा के साथ देथा कथा का हुआ मंचन । 7वें देहात लोक रंग पर्व में द्वितीय दिवस लोकरंग समिति सतना द्वारा "विजय दानदेथा" की देथा कथा का मंचन हुआ । रीवा जिले के टी.पी.एस.पब्लिक स्कूल हिनौता आयोजित देहात लोक रंग पर्व अपने पूरे रंग में है । भारत सरकार संस्कृति मंत्रालय के सहयोग से रावेन्द्र प्रताप सिंह शिक्षा सांस्कृतिक समिति, द्वारा आयोजित होने वाले "देहात लोकरंग पर्व में दूसरा दिन और भी रोचक रहा । स्त्री के मन के प्रेम तब साकार है, जब उसमें प्रेम और प्रेमी दोनों सच्चे हो वाक्य को सार्थक करती है यह नाट्य प्रस्तुति । कलाकरों ने बेहतर अभिनय किया एवं दर्शकों ने नाटक का भरपूर आनंद लिया ।
आयोजन में अपने अतिथि उद्बोधन में बोलते हुए योगेंद्र सिंह (अध्यक्ष कृषि स्थायी समिति जिला पंचायत रीवा) ने कहा कि लोक कथाओं में अनेक ज्ञान की बाते सहजता से समझ आ जाती हैं । आज की आज की नाट्य प्रस्तुति हमारे आस-पास चर्चित किस्से कहानी से निर्मित थी । इस कारण और प्रभावी रही । देहात लोकरंग पर्व का आयोजन प्रति वर्ष अनोखा होता है । मुझे इस महोत्सव में शामिल होकर बहुत प्रशन्नता होती है । विपुल सिंह और उनकी टीम बहुत मेहनत कर के यह आयोजन हमारे लिए प्रति वर्ष आयोजित करती है । रावेन्द्र प्रताप सिंह शिक्षा सांस्कृतिक समिति का यह महोत्सव काबिले तारीफ है ।
देहात लोक रंग पर्व में रंग अनुभव के कलाकारों ने पूर्व रंग अंतर्गत होली नृत्य भी प्रस्तुत किया । शामिल कलाकार राजकुमार कोरी एवं श्रुति द्विवेदी तथा इनके संगी साथी थे ।
"देथा कथा" सार-:
देथा कथा,विजयदान देथा कि लोक कथाओं का एक ऐसा सम्मिश्रण है । जिसमें प्रेम की पराकाष्ठा, त्याग और समर्पण का प्रत्यक्ष प्रमाण, दिखता है । मानव के असमंजस की व्यथा को सहजता के साथ मंच पर प्रस्तुत किया गया है। इस कथा में लक्ष्मी का ब्याहता, रत्ना सेठ उसे घर मे छोड़कर परदेश काम के लिए चला जाता है, और एक प्रेत जो दुनिया छोड़ चुका है, दुल्हन के प्रेम में विवश होकर इंसानी रूप धरता है । उसी रूप में एक अधूरी प्रेम कथा को पूरा करता है। इस सब के बीच बहुत ही रोचक पहलू आते जाते रहते हैं। लोक रंग के कलाकरों द्वारा इस लोक कथा को बघेली बोली, बघेली गीत और बघेली परिवेश में सजाया गया है। जिस कारण यह प्रस्तुति ग्रामीण जन को अपने जोड़कर रखती है ।
लोकरंग सतना-:
लोकरंग समिति प्रति पल,प्रति क्षण,प्रतिदिन , प्रति वर्ष नवागत कलाकारों के साथ नित नए प्रयोग करती आई है।नाट्य कार्य शालाओ का आयोजन कर अपने क्षेत्र में रंग विस्तार करती आई है। गॉवो,कस्बों मे सामाजिक चेतना अंतर्गत नुक्कड़ नाटकों का प्रदर्शन करना ,छोटे बच्चों को रंगमंचीय प्रशिक्षण देना, बुजुर्गों को रंगमंच से जोड़ना तथा युवाओं के साथ प्रायोगिक नाटक करना संस्था का मुख्य उद्देश्य रहा है । संस्था के कलाकारों ने देश के विभिन्न नाट्य समारोहों में भागीदारी लेते हुए रीवा ,कटनी , प्रयाग राज ,भोपाल,बैंगलोर , वाराणसी ,उज्जैन,सीधी, ग्वालियर ,हरियाणा , छिन्दवाडा,बेगूसराय आदि मुख्य नगरों में नाट्य प्रस्तुतियॉ दी है।
पात्र परिचय-:
मंच पर:-सूत्रधार 1-हर्ष वर्धन सिंह परिहार,सूत्रधार 2-सुरेन्द चौधरी, जत्ना सेठ-कृष्ण कांत गुप्ता ,रत्ना सेठ-रामबहादुर दाहिया,भूत-द्वारिका दाहिया, लक्ष्मी-अनामिका दाहिया ,अम्मा-अदिति दाहिया,गडरिया-शिवा गुप्ता, पंडित जी-अखिलेश दाहिया, नाऊन-हर्षिता दाहिया,मुखिया जी-सुरेंद्र चौधरी,लक्ष्मी की अम्मा-श्रेया दाहिया,लक्ष्मी के बाबा-हर्षवर्धन सिंह परिहार,नीरज (रत्ना का दोस्त) - अखिलेश,कोरस-सुमित पाठक,अंश कुशवाहा, कुणाल दाहिया,शिवम चौधरी,संगीत-दिव्यांश दाहिया,अमन चौधरी,लेखक-विजय दान देथा, निर्देशन-सविता दाहिया । आखिरी दिन नाटक आदिशंकराचार्य की प्रस्तुति होगी ।